क्या मराठा आरक्षण को लागु कर मराठाओं के मसीहा बन गये हैं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे?

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क्या मराठा आरक्षण को लागु कर मराठाओं के मसीहा बन गये हैं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे?

देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार से कम राजनितिक अनुभव के बावजूद, मराठा आरक्षण आंदोलन को हैंडल करने और सधी रणनीति के साथ मनोज जरांगे को मनाने में मिली सफलता

योगेश पाण्डेय – संवाददाता 

मुंबई – महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग नई नहीं है, पिछले साल जब इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी तो यह माना गया था कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली महायुति सरकार के लिए यह आंदोलन बड़ी चुनौती साबित होगा। जालना में लाठीचार्ज के मामले को छोड़ दिया जाए तो महाराष्ट्र सरकार इस आंदोलन को संभालने में सफल रही है। जून 2020 में जब भाजपा ने चौंकाते हुए राज्य की कमान एकनाथ शिंदे को सौंपी थी तो ऐसा माना गया था कि शिंदे को मुख्यमंत्री के तौर काम करने का अनुभव नहीं है। वे बड़े नेता नहीं है, लेकिन मराठा आरक्षण के मोर्चे पर उनके द्वारा लिए गए फैसलों ने अब इस चर्चा पर विराम लगा दिया है। 19 महीने के कार्यकाल में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे एक नई लकीर खींचते हुए आगे बढ़ रहे हैं। राज्य में अभी तक कुल 16 मुख्यमंत्री हुए हैं। इनमें 11 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से बने हैं। इन 11 मुख्यमंत्रियों में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी शामिल हैं।

मराठा आरक्षण को हैंडल करने को एकनाथ शिंदे ऐसे वक्त पर सुर्खियों में हैं जब उनके साथ फ्रेम में देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार जैसे राज्य के दो कद्दावर नेता भी हैं। देवेंद्र फडणवीस राज्य में पूरे पांच साल तक सरकार चला चुके हैं, तो वहीं अजित पवार पांचवीं बार राज्य के उपमुख्यमंत्री हैं, लेकिन मराठा आंदोलन को देखें तो पहली बार मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे दोनों से आगे दिखाई पड़े। मराठा आंदोलन में उनकी सधी हुई रणनीति तीसरी बार सफल हुई। दो बार उन्होंने जरांगे की भूख हड़ताल न सिर्फ तुड़वाई बल्कि मराठा समुदाय को खुद के खिलाफ नहीं होने दिया। राज्य में एकनाथ शिंदे जिस तरह से मराठा आरक्षण के मुद्दे को हल कर रहे हैं उससे उनकी छवि मराठा मसीहा के तौर पर उभर रही है। मनोज जरांगे पाटिल के आंदोलन के दौरान जब राज्य में मराठा समुदाय के युवाओं ने आत्महत्या की तो बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने सधी हुई अपील की थी, जिसका खासा असर भी दिखाई दिया था।

मनोज जरांगे पाटिल के मुंबई मार्च में उमड़ी भीड़ को देखते हुए पुलिस ने साफ कर दिया था कि इतनी भीड़ किसी भी मैदान में नहीं समा सकती है, ऐसे माना गया है कि मुंबई में स्थिति बेकाबू हो जाएगी। जब लोनावाला से जरांगे की अगुवाई में मराठाओं की भीड़ बढ़ रही थी तो शिंदे ने स्थिति को संभाला और नवी मुंबई में जरांगे को मना लिया और खुद को मराठा समुदाय के सबसे बड़े पैरोकार और चिंता करने वाले शख्स के तौर पेश किया। जब शिंदे ने दूसरी बार जरांगे की हड़ताल खत्म कराई तो उन्होंने पूर्व जजों को मोर्चे पर लगाया था। ज्यूडिशयल ऑफिसर रहे पूर्व जजों की मदद से उन्हें सफलता मिली थी, तो वहीं दूसरी मराठा आंदोलन में देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को कठिनाई महसूस करते देखा गया।

बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाले एकनाथ शिंदे ने जिस तरह मराठा समाज और उनकी मांगों को हैंडल किया। उसके बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में नए मराठा लीडर बनकर उभरे हैं। मूलरूप से महाराष्ट्र के सतारा जिले से ताल्लुक रखने वाले एकनाथ शिंदे ने अपनी राजनीति की शुरुआत ठाणे से की थी। वे आनंद दिघे को अपना गुरु और बालासाहेब ठाकरे को प्रेरणा मानते हैं। महाराष्ट्र में मोटे तौर पर मराठा समुदाय अभी तक कांग्रेस और राकांपा का ही वोट बैंक रहा है। राजनीतिक विश्लेषक स्वप्निल सावरकर कहते हैं कि निश्चित तौर पर एकनाथ शिंदे ने अपनी रणनीति से मराठा वोट बैंक को भी अपनी ओर किया है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि अगर वाकई शिंदे लोकसभा चुनावों में मराठा वोटबैंक महायुति गठबंधन की तरफ खींचने में सफल रहते हैं तो यह मवीआ के लिए सबसे बड़ा झटका होगा। इससे सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस, शरद पवार और उद्धव ठाकरे को होगा।

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