मवीआ की ताकत घटाने के चक्कर में, कहीं भाजपा के ही विधायक दग़ा न कर जाएं
शिवसेना और राकांपा विधायकों को मन्त्रीपद मिलने के चलते वरिष्ठ भाजपाई अब भी वोटिंग लिस्ट में। मन्त्रीपद की बाट जोह रहे नेताओं में असंतोष
योगेश पाण्डेय – संवाददाता
मुंबई : 2019 विधानसभा चुनाव के बाद से महाराष्ट्र की राजनीति में अस्थिरता बनी हुई है। 2014 से 2019 तक के कार्यकाल में देवेन्द्र फड़णवीस की कैबिनेट में भाजपा का दबदबा रहा। 2019 के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई जबकि भाजपा विपक्ष में बैठी। 105 विधायकों के चुने जाने के बाद भी भाजपा को सत्ता से बाहर बैठना पड़ा। जून 2022 में शिवसेना के विभाजन के बाद, एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फड़नवीस सत्ता में आए। 2014 के बाद से ही भाजपा के कई वफादार नेता कैबिनेट में मौका मिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे, उन्हें लगा था कि ये 2019 में पूरा हो जाएगा, लेकिन 2019 में माविया सरकार आ गई। फिर 2022 में तोड़ – जोड़ की राजनीती के चलते सरकार आने के बाद पहले दो महीनों के लिए केवल मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस दो ही मंत्री थे।
मौजूदा महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के 105 विधायक हैं, और उनमें से केवल 10 को हो मन्त्रीपद मिला है। वहीं एकनाथ शिंदे की शिवसेना के पास 40 विधायक हैं जिनमें से 10 मौजूदा मंत्री हैं। अब अजित पवार के नेतृत्व में राकांपा का एक नया गुट सरकार में शामिल हो गया है, जिन्हें 9 मंत्री पद मिले हैं। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अजित पवार के साथ कितने विधायकों का उन्हें समर्थन है। विधायकों की संख्या और मंत्रियों की संख्या पर गौर करें तो भाजपा के मंत्रियों की औसत संख्या बहुत कम है।
मौजूदा कैबिनेट में भाजपा के 10 मंत्री हैं, जिनमें कांग्रेस से राधाकृष्ण विखे पाटिल और राकांपा से विजयकुमार गावित भाजपा पार्टी में बाहर से आये हुए विधायक हैं। इसलिए मुल भाजपा विधायक अब भी वेटिंग लिस्ट में चल रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक बिरजू मुंद्रा को उम्मीद थी कि तीन-चार बार के भाजपा विधायकों को मंत्री पद मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा कदम 2024 से पहले माविया की ताकत को कम करना है। इस बीच भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने भी पिछले साल पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को त्याग करने की नसीहत दी थी।