मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज 317 में से 286 मुकदमें वापस लेगा गृहमंत्रालय 

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मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज 317 में से 286 मुकदमें वापस लेगा गृहमंत्रालय 

भीमा कोरेगांव मामले से भी जुड़े 326 में से 324 मुकदमे वापस लेने की तैयारी। विधानसभा के शीतकालीन अधिवेशन में राज्य सरकार पेश करेगी आंकड़ा 

योगेश पाण्डेय – संवाददाता 

मुंबई – राज्य गृह विभाग ने राज्यभर में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर विभिन्न स्थानों पर हुए आंदोलनों के दौरान दर्ज कुल मामलों में से 286 मुकदमों को वापस लेने की मंजूरी दे दी है। वहीं गृह विभाग के सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार ने कोरेगांव भीमा मामले में राज्य भर में दर्ज 317 मामले वापस लेने का भी फैसला किया है। ये आंकड़े जल्द ही राज्य विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किये जाने की उम्मीद है।

20 सितंबर 2022 को राज्य सरकार ने राज्य में विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में मुकदमे वापस लेने की घोषणा की थी। इसके बाद मार्च 2023 तक आरोप पत्रित मामलों को वापस लेने के लिए पुलिस आयुक्तालय क्षेत्र के लिए राजस्व उप-विभागवार उप-विभागीय अधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। इसके बाद सरकार ने मराठा आरक्षण आंदोलन और राज्य के विभिन्न स्थानों पर कोरेगांव भीमा में हुई घटना के मामलों को वापस लेने के लिए 26 अक्टूबर 2018 को एक समिति नियुक्त की थी। इस समिति द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार, राज्य में मराठा आरक्षण के 324 मामले वापस ले लिए गए हैं।

इन अनुशंसाओं के अनुसार समिति ने राज्य में कुल 326 मामलों की अनुशंसा की, इन 326 मामलों को लेकर सरकार ने फैसला ले लिया है और 324 मामलों को वापस लेने की मंजूरी दे दी है। बताया जा रहा है कि इनमें से दो मामलों को वापस लेने पर रोक लगा दी गई है। गृह विभाग के सूत्रों ने बताया कि इन 324 मामलों में से 286 मामले वास्तव में अदालत से वापस ले लिए गए हैं जबकि 23 मामले अदालत के आदेशों के लिए और 10 मामले मुआवजे का भुगतान न करने के लिए, जबकि पांच मामले अन्य कारणों से लंबित हैं।

कोरेगांव भीमा दंगों के सिलसिले में राज्य भर में दर्ज मामलों में से पुलिस महानिदेशक ने सरकार से कुल 371 मामले वापस लेने की सिफारिश की थी। इनमें से 317 मामलों को वापसी की मंजूरी दी गई है और 53 मामलों को खारिज कर दिया गया है। गृह विभाग के सूत्रों ने बताया कि बाकी एक मामला वापस ले लिया गया क्योंकि इसका आंदोलन से कोई संबंध नहीं था।

राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन से जुड़े मामलों को वापस लेने के संबंध में सरकार द्वारा घोषित जीआर के अनुसार, राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन से उत्पन्न अपराधों से संबंधित मामलों को वापस लेने की शर्तें यह थीं कि ऐसी घटना में किसी की जान नहीं गई हो, और ऐसी घटना में निजी एवं सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान पांच लाख रुपये से अधिक नहीं हुआ हो। साथ ही कहा गया है कि विधायकों और सांसदों के अपराधों के लिए हाई कोर्ट की सहमति जरूरी है। सरकार के इस फैसले में यह घोषणा की गई कि यह शर्त सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिट याचिका में दिए गए निर्देशों के अनुरूप रखी गई है।

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