बॉम्बे हाईकोर्ट की ट्रायल जज को नसीहत, उजागर न हो रेप विक्टिम की पहचान

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बॉम्बे हाईकोर्ट की ट्रायल जज को नसीहत, उजागर न हो रेप विक्टिम की पहचान

ठाणे की विशेष अदालत ने 11 वर्षीय बेटी के बलात्कारी दोषी पिता को सुनाई थी 10 साल की सजा। बॉम्बे हाईकोर्ट ने किया बरी 

योगेश पाण्डेय – संवाददाता 

मुंबई – बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि रेप विक्टिम की पहचान उजागर नहीं हो, ट्रायल जज इसका ध्यान रखें। कोर्ट ने रेप के मामले में दोषी आरोपी को बरी करते हुए ट्रायल जज को यह नसीहत दी है। ठाणे की विशेष अदालत ने 11 साल की बेटी के साथ रेप के आरोप में आरोपी पिता को दोषी ठहराते हुए 10 साल के कारावास की सजा सुनाई थी। जनवरी 2020 के सजा के फैसले के खिलाफ आरोपी ने हाई कोर्ट में अपील की थी।

जस्टिस किशोर संत के सामने आरोपी की अपील पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान जस्टिस संत ने पाया कि विशेष अदालत के जज ने फैसले में कई जगह विक्टिम के नाम का उल्लेख किया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार न्यायालयों को आगाह किया है कि उन्हें विक्टिम की पहचान का खुलासा नहीं करना है। मौजूदा केस की विक्टिम के बयान में भी उसके नाम का उल्लेख किया है। इससे खिन्न जस्टिस संत ने कहा कि केस से जुड़े जज भविष्य में इस विषय पर जरूरी सावधानी बरतें।

इस दौरान जस्टिस संत ने सुप्रीम कोर्ट के उन दिशा-निर्देशों की ओर भी ध्यान दिलाया, जिसके तहत प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में विक्टिम का नाम प्रकाशित और प्रसारित करने पर रोक लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस अथॉरिटी को भी इस बारे में जरूरी सावधानी बरतने को कहा है। केवल पहचान को उचित ठहराने वाली स्थिति में ही विक्टिम की पहचान उजागर की जाए, अन्यथा उसे गोपनीय रखा जाए। रेप से जुड़ी एफआईआर को पब्लिक डोमेन से दूर रखने का भी निर्देश दिया गया है।

इससे पहले आरोपी की वकील जान्वही कर्णिक ने कहा कि आरोपी पर लगाए गए आरोपों को लेकर ठोस सबूत नहीं पेश किए गए हैं। मामले को लेकर देरी से एफआईआर दर्ज कराई गई है, इसलिए उनके मुवक्किल को केस से बरी किया जाए। वहीं सरकारी वकील ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। विक्टिम के वकील ने कहा कि पिता बच्चे का संरक्षक होता है, लेकिन आरोपी भक्षक के रूप में नजर आया है। इसलिए जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले अपीलकर्ता पर नर्मी न दिखाई जाए। सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस संत ने कहा कि केस से जुड़े गवाहों के बयान भरोसे लायक नजर नहीं आते हैं। मेडिकल सबूत भी आरोपी पर लगे आरोपों का समर्थन नहीं करते हैं। इस तरह जस्टिस संत ने केस से जुड़े आरोपी को दोषी ठहराने के आदेश को रद्द कर आरोपी को राहत प्रदान की।

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