दल-बदल विरोधी कानून पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से माँगा जवाब 

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दल-बदल विरोधी कानून पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से माँगा जवाब 

विलय को संरक्षण देने के प्रावधान को जनहित याचिका दायर कर दी गई चुनौती। दल-बदल करनेवाले विधायकों को सदन में एंट्री नहीं देने की मांग

योगेश पाण्डेय – संवाददाता 

मुंबई – बॉम्बे हाई कोर्ट ने दल-बदल विरोधी कानून के तहत विलय को संरक्षण देने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। इस याचिका में किसी दल में विलय की स्थिति विधायकों की अयोग्यता की कार्रवाई को सुरक्षा देने वाले प्रावधान को चुनौती दी गई है। याचिका में मांग की गई है कि ऐसे विधायकों को विधानसभा की कार्रवाई में हिस्सा नहीं लेने दिया जाए, साथ ही ऐसे विधायकों को किसी भी पद पर नहीं बैठाया जाए। बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डी के उपाध्याय और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने महान्यायवादी आर वेंकटरमनी को भी नोटिस जारी किया क्योंकि जनहित याचिका में संविधान की दसवीं अनुसूची के चौथे अनुच्छेद की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। दसवीं अनुसूची दल-बदल कानून से संबंधित है।

यह प्रावधान कहता है कि दो दलों के आपस में विलय कर लेने की स्थिति में दल-बदल के आधार पर उन्हें अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता है। हाई कोर्ट मीडिया एवं विपणन पेशेवर तथा गैर सरकारी संगठन वनशक्ति की संस्थापक न्यासी मीनाक्षी मेनन की जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा था। खंडपीठ ने केंद्र सरकार को छह सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। मेनन के वकील अहमद आबिदी ने दलील दी कि दल-बदल ‘सामाजिक बुराई’ है तथा विधायक/सांसद जनहित के कारण नहीं बल्कि सत्ता, धन के लालच में तथा कभी-कभी जांच एजेंसियों के डर से अपनी निष्ठा बदल लेते हैं।

आबिदी ने कहा कि इन सब बातों की मार मतदाता भुगत रहा है, मतदाता संसद तो जा नहीं सकता। मतदाता बस अदालत ही आ सकता है। एक खास विचारधारा या घोषणापत्र के आधार पर वोट डाला जाता है लेकिन बाद में पार्टी ही बदल जाती है। यह मतदाता के साथ विश्वासघात है। मेनन की अर्जी में अनुरोध किया गया है कि अदालत दसवीं अनुसूची में राजनीतिक दलों के ‘विभाजन एवं विलय’ की व्यवस्था देने वाले अनुच्छेद को असंवैधानिक तथा उसके मूल स्वरूप के विरूद्ध घोषित करे। याचिका में कहा गया है कि नेता गुट या समूह में दल बदल करने के लिए इस प्रावधान का इस्तेमाल करते हैं और इस प्रक्रिया में मतदाताओं के साथ विश्वासघात किया जाता है।

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