धर्मवीर आनंद दिघे की हत्या का कोई सबूत है तो पेश करें शिंदे गुट। केवल राजनितिक टीआरपी के लिए दिघे साहब के नाम का इस्तेमाल करना दुर्भाग्यपूर्ण – केदार दिघे
संजय सिरसाट के बयान पर भड़के केदार दिघे। कहा दिघे साहब की मृत्यु के 22 साल बाद उनकी छवि को धूमिल ना करे शिंदे गुट
योगेश पाण्डेय – संवाददाता
ठाणे – शिवसेना के दिवंगत नेता धर्मवीर आनंद दीघे की मौत पर एक बार फिर राजनीती शुरू हो गई है। ठाकरे गुट और शिंदे गुट एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने में जुट गये हैं। शिंदे गुट के विधायक संजय शिरसाट ने कहा कि आनंद दीघे की हत्या की गई है न कि उनकी दुर्घटनावश मृत्यु हुईं है। इस बीच धर्मवीर आनंद दीघे के भतीजे केदार दीघे ने शिंदे गुट के नेताओं को सीधी चुनौती देते हुए कहा कि अगर आपके पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं तो पेश कीजिए, आनंद दीघे का भतीजा होने के नाते मैं इसके पीछे मजबूती से खड़ा रहूंगा।उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर शिंदे समूह की जमकर आलोचना की।
केदार दिघे ने कहा कि मुझे बहुत दुख होता है कि पिछले 22 वर्षों में दीघे साहब की मृत्यु का मुद्दा किसी ने नहीं उठाया, इस बारे में कभी किसी ने कुछ नहीं बोला। दीघे साहब का विषय तब उठाया जाता है जब चुनाव होते हैं या जब कोई अपना अस्तित्व दिखाना चाहता है। संजय शिरसाट ने यह भी कहा कि आनंद दीघे की मौत की जांच होनी चाहिए, इसलिए मेरी सीधी मांग है कि अगर आपके पास कुछ है तो मैंने गुरुवर्य आनंद दीघे को मुखाग्नि दी है। मैं उनका भतीजा हूं। इसलिए मेरा कर्तव्य है कि अगर दीघेसाहेब के मामले में कोई गलत घटना होती है, तो मैं उसके लिए दृढ़ता और मजबूती के साथ खड़े रहने के लिए तैयार हूं। लेकिन दुख इस बात का है कि दीघे साहब के नाम राजनीती करने और टीआरपी बटोरने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा रहा है।
ये लोग साहब की छवि खराब कर रहे हैं। पिछले 22 सालों पर नजर डालें तो इनकी तस्वीरें बड़ी हो गई हैं और दीघे साहब का फोटो उनके फोटो के पीछे रहने लगा है। कुछ जगहों पर तो तस्वीरें ही नहीं हैं। इस तरह की राजनीति रुकनी चाहिए। केदार दीघे ने यह भी कहा कि अगर दीघे साहब के नाम पर जनकल्याण के कार्यक्रम होते हैं तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन उनके नाम पर केवल राजनीती करना दुर्भाग्यपूर्ण है।
दीघे साहब एक पार्टी तक ही सीमित नहीं थे। यदि आपने देखा होगा तो दीघे साहेब के पास आने वालें लोग किसी एक वर्ग के नहीं होते थे। आनंद मठ में सभी जाति और धर्म के लोग आते थे। यहां जो सत्ता में थे वो भी और जो सत्ता में नहीं थे, उनका भी दिघे साहब से व्यक्तिगत संबंध था। दीघे साहब को कमजोर बताकर दीघे साहब की छवि खराब करने की कोशिश की गई। पिछले 10 महीनों में आपने शिवसेना का नाम चुराया है, आपने पार्टी चुराई है, आपने पार्टी का चुनाव चिन्ह चुराया और इसके बावजूद आप दीघे साहब के सिद्धांत सिखा रहे हैं? दीघेसाहेब भगवा के प्रति निष्ठावान थे। दीघेसाहेब के बाद उन्होंने कई पदों का आनंद लिया, और पिछले छह आठ महीनों में ऐसा क्या हो गया कि वे पार्टी पर मुकदमा कर रहे हैं? केदार दिघे ने सवाल उठाते हुए शिंदे गुट की आलोचना की।