जाति है कि जाती नही, समाज में जातिवाद एक कोढ़ समान
भारत। जातिवाद भारतीय समाज में एक गहरी जड़ें जमाए हुए सामाजिक बुराई है, जो सदियों से समाज को खोखला करती आ रही है। यह एक ऐसी बीमारी है, जो न केवल सामाजिक समरसता को नष्ट करती है, बल्कि मानवता, समानता और भाईचारे के मूल्यों को भी कमजोर करती है। जातिवाद, जिसकी नींव सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, आज भी समाज में भेदभाव, अन्याय और असमानता का प्रमुख कारण बना हुआ है।
जातिवाद एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें लोग जन्म के आधार पर विभिन्न सामाजिक समूहों या जातियों में बंटे होते हैं। भारत में यह व्यवस्था प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसे वर्ण व्यवस्था के रूप में जाना जाता था। हालांकि, समय के साथ यह व्यवस्था कठोर और भेदभावपूर्ण बन गई। आज जातिवाद का प्रभाव न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में, बल्कि शहरी और शिक्षित समाज में भी देखा जा सकता है। यह नौकरियों, शिक्षा, विवाह और सामाजिक रिश्तों में भेदभाव का कारण बनता है। जातिवाद के कारण समाज में ऊंच-नीच की भावना बढ़ती है। कुछ जातियों को श्रेष्ठ और कुछ को हीन समझा जाता है, जिससे सामाजिक एकता कमजोर होती है। कई बार निचली मानी जाने वाली जातियों को शिक्षा और रोजगार के अवसरों से वंचित रखा जाता है, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ती है। जातिवाद के कारण सामाजिक तनाव और हिंसक घटनाएं भी सामने आती हैं। जातिगत आधार पर होने वाले विवाद और दंगे समाज में अशांति फैलाते हैं। जातिगत भेदभाव का शिकार लोग आत्मसम्मान की कमी और मानसिक तनाव का सामना करते हैं। यह उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक प्रगति में बाधा बनता है। जातिवाद समाज के समग्र विकास को बाधित करता है। जब योग्यता के बजाय जाति को प्राथमिकता दी जाती है, तो प्रतिभा का दमन होता है और समाज का नुकसान होता है।जातिवाद की जड़ें सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कारकों में निहित हैं। कुछ धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं ने जाति व्यवस्था को बढ़ावा दिया।
शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण लोग जातिगत भेदभाव को स्वीकार करते हैं तो वंही कुछ राजनेता वोट बैंक के लिए जातिवाद को बढ़ावा देते हैं।
जातिवाद को जड़ से खत्म करने के लिए सामूहिक और दीर्घकालिक प्रयासों की आवश्यकता है जैसे कि शिक्षा के माध्यम से लोगों में जागरूकता लाई जा सकती है। स्कूलों में बच्चों को समानता और भाईचारे के मूल्यों को सिखाना चाहिए। सरकार को जातिगत भेदभाव के खिलाफ सख्त कानून लागू करने चाहिए। जिन्हें और प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है। अंतरजातीय विवाह सामाजिक एकता को बढ़ावा दे सकते हैं और जातिगत बंधनों को तोड़ सकते हैं।निचली मानी जाने वाली जातियों को शिक्षा और रोजगार के समान अवसर प्रदान किए जाएं, ताकि आर्थिक असमानता कम हो।सामाजिक संगठनों, मीडिया और सरकार को मिलकर जातिवाद के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।जाति आधारित राजनीति को हतोत्साहित करना होगा। नेताओं को जातिगत भावनाओं को भड़काने से रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाएं।
जातिवाद समाज के लिए एक कोढ़ है, जो न केवल व्यक्तियों के बीच भेदभाव पैदा करता है, बल्कि समाज की प्रगति को भी बाधित करता है। इसे समाप्त करने के लिए शिक्षा, जागरूकता, कानूनी कदम और सामाजिक सुधारों की आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि मानवता सबसे बड़ा धर्म है और सभी लोग जन्म से समान हैं। यदि हम सब मिलकर इस दिशा में प्रयास करें, तो एक ऐसा समाज बनाना संभव है, जहां जाति नहीं, बल्कि कर्म और योग्यता का सम्मान हो। यह न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक आदर्श समाज की नींव रखेगा।
– इंद्र यादव, भदोही, यूपी [email protected]