नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में हुईं मौतों के बावजूद भी नहीं जागी सरकार
पिछले पांच साल से प्रदेश में नहीं है पूर्णकालिक चिकित्सा शिक्षा निदेशक
योगेश पाण्डेय – संवाददाता
मुंबई – राज्य के हर जिले में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरू करने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने की कोशिश में लगी सरकार पिछले पांच वर्षों में चिकित्सा शिक्षा निदेशालय को एक पूर्णकालिक चिकित्सा शिक्षा निदेशक नहीं दे पाई है। साल 2019 में तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. प्रवीण शिंगारे के सेवानिवृत्त होने के बाद से आज तक चिकित्सा शिक्षा विभाग पूर्णकालिक निदेशक की नियुक्ति नहीं कर सका है। अस्थाई चिकित्सा शिक्षा निदेशालय पिछले पांच साल से अस्थाई तौर पर चल रहा है। लेकिन इसका मलाल न तो चिकित्सा शिक्षकों को है और न ही चिकित्सा शिक्षा मंत्री को।
तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. प्रवीण शिंगारे जनवरी 2019 में सेवानिवृत्त हुए। उनकी सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. प्रकाश वाकोडे को कुछ दिनों के लिए अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद तत्कालीन संयुक्त संचालक डॉ. तात्या राव लहाने को चिकित्सा शिक्षा का अस्थाई संचालक नियुक्त किया गया। वह 2021 तक निदेशक पद पर रहे। नांदेड़ सरकारी मेडिकल कॉलेज के संस्थापक और नासिक स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. दिलीप म्हैसेकर को डॉ.लहाने की सेवानिवृत्ति के बाद अस्थायी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। म्हैसेकर से पदभार ग्रहण करने के बाद डॉ. अजय चंदनवाले को अंतरिम निदेशक नियुक्त किया गया। तब चिकित्सा शिक्षा मंत्री गिरीश महाजन थे। हालाँकि डॉ. दिलीप म्हैसेकर को जुलाई में फिर से अस्थायी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था जब राकांपा के हसन मुश्रीफ चिकित्सा शिक्षा मंत्री रहे। पिछले पांच साल में चिकित्सा शिक्षा संचालनालय पूर्णकालिक निदेशक की नियुक्ति तक नहीं कर पाया है। इस विभाग के जानकारों का कहना है कि सेवा नियमों का मुद्दा उठाकर आज तक यह नियुक्ति नहीं की गयी है और चिकित्सा शिक्षा संचालनालय का प्रशासन मौसमी आधार पर कब तक चलेगा, यह बताना संभव नहीं है।
1971 में स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग अलग हो गये, इसके बाद स्वास्थ्य विभाग में निदेशक, संयुक्त निदेशक, अपर निदेशक, उप निदेशक और सहायक निदेशक के 350 पद सृजित किये गये। हालाँकि चिकित्सा शिक्षा निदेशालय, जो राज्य में सरकारी मेडिकल कॉलेजों के मामलों को नियंत्रित करता है, ने एक अस्थायी निदेशक और एक अस्थायी संयुक्त निदेशक के अलावा एक भी पद सृजित नहीं किया है। 1971 में राज्य में मात्र पांच सरकारी मेडिकल कॉलेज थे। 2008 में 14 सरकारी मेडिकल कॉलेज बनाए गए, जबकि 2023 में राज्य में 25 सरकारी मेडिकल कॉलेज हो गए, लेकिन चिकित्सा शिक्षा निदेशालय में कर्मचारियों और अधिकारियों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। शुरुआती दौर में संचालनालय में 205 स्वीकृत पद थे, जिनमें से 103 पद भरे हुए थे, लेकिन आज चिकित्सा शिक्षा संचालनालय में 25 सरकारी मेडिकल कॉलेज होने के बावजूद 203 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 73 पद नहीं भरे गये हैं।
तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा निदेशक डाॅ. प्रवीण शिंगारे ने मेडिकल कॉलेजों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए निदेशालय के विस्तार का प्रस्ताव तैयार किया था। चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा गया था जिसमें कहा गया था कि चिकित्सा शिक्षा निदेशक, संयुक्त निदेशक, अतिरिक्त निदेशक और आठ संभागीय उप निदेशक सहित साढ़े तीन सौ कर्मचारी-अधिकारियों की आवश्यकता है। लेकिन पांच साल बाद भी कोई नहीं कह सकता कि उसका क्या हुआ। वर्तमान में सरकारी मेडिकल कॉलेज के राजनीतिक प्रचार के कारण हर जिले में 25 कॉलेज शुरू किए गए हैं जबकि दो प्रस्तावित हैं और इन सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भी 45 प्रतिशत से अधिक शिक्षकों और प्रोफेसरों के पद खाली हैं। इसका असर मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हजारों छात्रों पर पड़ रहा है। सूत्रों की माने तो नांदेड़ सरकारी मेडिकल कॉलेज में बड़ी संख्या में मौतें और नागपुर और घाटी में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बड़ी संख्या में मौतें होने के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग की बैठक की और रिक्त पदों को तुरंत भरने का आदेश दिया, लेकिन अभी भी चिकित्सा शिक्षा विभाग में चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।