भाजपा के साथ सरकार शिंदे गुट की बगावत का सबसे बड़ा साक्ष्य – उद्धार ठाकरे गुट
विधायकों की अयोग्यता पर हुईं सुनवाई में दोनों गुटों ने पेश की दलीलें, अब अगली सुनवाई 2 नवंबर को
योगेश पाण्डेय – संवाददाता
मुंबई – गुवाहाटी की बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुना जाना, उद्धव ठाकरे द्वारा बुलाई गई बैठक में 40 विधायकों का शामिल न होना, राज्यपाल के समक्ष भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा, विधायकों की ये हरकत या व्यवहार शिंदे गुट के शिवसेना छोड़ने का सबूत है और मूल पार्टी कौन है, यह पहले तय होना चाहिए, ऐसा तर्क उद्धव ठाकरे गुट की ओर से विधानसभा अध्यक्ष एडवोकेट राहुल नार्वेकर के समक्ष गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान किया गया।
इस दौरान शिंदे गुट ने मांग की कि सबूत पेश करने की इजाजत दी जाए। नार्वेकर के समक्ष सुनवाई में वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने ठाकरे गुट की ओर से दलीलें पेश मरते हुए कहा कि जो मामले सार्वजनिक रूप से घटित हुए हों और किसी ने आपत्ति न की हो, उनमें साक्ष्यों की जांच की जरूरत नहीं है। शिवसेना के संविधान, राजनीतिक दल और संसदीय दल की संरचना, चुनाव आयोग के साथ पत्राचार आदि के लिए दस्तावेजी विवरण उपलब्ध हैं। उसके आधार पर मूल पक्ष कौन है, इस मुद्दे का निर्णय होना चाहिए। इसके बाद ठाकरे गुट की ओर से यह स्पष्ट किया गया कि क्या विधायकों को अयोग्यता के संबंध में अपना बचाव करने का मौका दिया गया था, इसका पालन क्यों नहीं किया गया, वे बैठक में उपस्थित क्यों नहीं थे या उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया या नहीं।
शिंदे समूह की ओर से वरिष्ठ वकील अनिल साखरे और अनिल सिंह ने तर्क दिया कि प्रत्येक पक्ष को जनादेश मिला या नहीं, उनकी अनुपस्थिति के क्या कारण हैं, क्या उन्हें अयोग्यता के नोटिस में उठाए गए मुद्दों के जवाब में सबूत पेश करने की अनुमति दी जानी चाहिए। शिंदे गुट की ओर से कहा गया कि कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 12 फैसलों का हवाला देते हुए सबूतों की जांच करने का निर्देश दिया है। इस संबंध में अर्जी पर बहस अधूरी है और अब उक्त मामले में अगली सुनवाई 2 नवंबर को होगी।