
उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में महाराष्ट्र में दंगे नहीं हुए, इसलिए भाजपा वोटों का ध्रुविकरण करने में जुटी भाजपा
आनंद दिघे द्वारा विश्वास घतियों के साथ किये व्यवहार कि याद दिलाते हुए, एकनाथ शिंदे को अरविन्द सावंत कि फटकार
योगेश पाण्डेय – संवाददाता
मुंबई – शिवसेना उद्धव गुट के सांसद अरविन्द सावंत ने एकनाथ शिंदे और उनके सहयोगियों पर निशाना साधते हुए यह याद दिलाया की स्वर्गीय आनंद दिघे ने अपने साथ हुए विश्वासघात के बाद ठाणे में क्या किया था? उद्धव ठाकरे के राज्य का मुखिया बनने के बाद महाराष्ट्र में एक भी दंगे फसाद नहीं हुए, इस बात का सबसे बड़ा आघात भाजपा को पहुंचा। उन्होंने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की भी आलोचना की जिन्होंने उद्धव ठाकरे पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वह बालासाहेब के कंधे से कन्धा मिलाकर चलने वाले समर्थकों में से हैं।
जब मिडिया ने यह पूछा कि एकनाथ शिंदे ने कहा है कि वह बालासाहेब के समर्थक हैं, तो अरविंद सावंत ने कहा, उन्हें पहले आपको यह बताना चाहिए कि ईडी, सीबीआई मामलों, हत्या के आरोपों का क्या हुआ और फिर यह कहना चाहिए कि वह बालासाहेब के समर्थक हैं। क्या आपको याद है कि ठाणे में शिवसेना से विश्वासघात के बाद आनंद दीघे ने क्या किया था? उन्होंने ठाणे के सभी पार्षदों के इस्तीफे ले लिए थे। ठाणे महानगर पालिका में पांच साल तक कोई विपक्षी दल नहीं था। किसी एक पार्षद कि वजह से सभी पार्षदों को सजा दी गई थी। तो यह सॉगये कि यदि आज आनन्द दिघे जीवित होते तो होने आप को आनंद दिघे का सच्चा समर्थक कहने वाले एकनाथ शिंदे का क्या हाल करते।
जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तो देश में कई जगहों पर दंगे हुए, लेकिन महाराष्ट्र में नहीं हुआ। इसलिए भाजपा ने वोटों का ध्रुवीकरण करना शुरू कर दिया है और महाराष्ट्र इतना खुला नहीं है कि पता न चले। उद्धव ठाकरे ने राज्य का मुखिया बनकर दिखा दिया कि परिवार को कैसे संभाला जाता है, सभी धर्मों का सम्मान कैसे किया जाए, सभी की भावनाओं की रक्षा कैसे की जाए, महाराष्ट्र को कैसे आगे बढ़ाया जाए।
न्यायिक प्रणाली को अभी निर्णय लेना बाकी है, यहां तक कि पुलिस भी उसी तरफ काम कर रही है। अगर कानून-व्यवस्था की चिंता है तो उन्हें यह भी जवाब देना चाहिए कि कल तक हाथ-पैर तोड़ने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। इसलिए हमने राज्यपाल से मुलाकात की। राज्य कहाँ जा रहा है? यह सब गृह मंत्री के आदेश पर शुरू किया गया है। इसलिए दिल्ली में भी हमें हाथ में एक कागज लेकर बात करनी पड़ती है,अरविंद सावंत ने भी आलोचना की।