
क्या बगावत की राह पर चल पड़ी है राकांपा ? चाचा – भतीजे में सब कुछ आल इज वेल नहीं
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अजित पवार का शक्ति प्रदर्शन। राकांपा में सक्रिय दो गुटों में अजित पवार ज्यादा पावरफुल
योगेश पाण्डेय – संवाददाता
मुंबई – महाराष्ट्र की राजनीति के भीष्म पितामह कहे जाने वाले शरद पवार के दांव हमेशा चौंकाते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से वह खुद मुश्किलों में घिरे नजर आ रहे हैं। अभी कुछ महीने पहले ही शरद पवार के प्रयासों और मध्यस्थता से बनी राज्य की महा विकास अघाड़ी सरकार शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे की बगावत के चलते गिर गई थी। इसके अलावा उनकी अपनी पार्टी राकांपा में भी ऑल इज वेल जैसी स्थिति नहीं दिखाई पड़ रही है। इससे अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या शरद पवार अपने राजनीतिक करियर में सबसे बड़े संकट का सामना कर रहे हैं। इस कयास को रविवार को तब और बल मिल गया, जब दिल्ली में राकांपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अजित पवार ने बागी तेवर दिखा दिए। अजित पवार ने जयंत पाटिल का नाम वक्ता के तौर पर बुलाए जाने के ऐलान के साथ ही मंच छोड़ दिया।
उन्हें जयंत पाटिल के बाद अपना संबोधन करना था, लेकिन वह वापस ही नहीं लौटे। इस तरह मंच पर शरद पवार की मौजूदगी में अजित पवार के इस रुख को बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पार्टी में फूट होने के कयास भी लगाए जाने लगे हैं। रविवार को इसकी बानगी खुले तौर पर देखने को मिली। पार्टी के सांसद प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि शरद पवार के समापन भाषण से पहले अजित पवार संबोधित करेंगे। लेकिन वह मंच से ऐसे उठे कि फिर लौट कर नहीं आए और उनका इंतजार होता रहा है। मंच से ही कहा गया कि अजित पवार टॉयलेट में हैं। लेकिन वह देर तक नहीं आए और जब लौटे भी तो शरद पवार का समापन भाषण शुरू हो चुका था।
इतना ही नहीं अजित पवार जब मंच से उठकर गए थे तो उस वक्त उनके समर्थकों ने नारेबाजी भी की। उनके इस रुख को शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि नाराज अजित पवार को मनाने की जिम्मेदारी एक बार फिर से उनकी चचेरी बहन और सांसद सुप्रिया सुले को ही दी गई है। अजित पवार का यह रुख इसलिए भी राकांपा को टेंशन में डालने वाला है क्योंकि एक बार तो वह बगावत करके देवेंद्र फडणवीस के साथ शपथ तक ले चुके हैं। दोनों ने तड़के ही सीएम और डिप्टी सीएम की शपथ ले ली थी, लेकिन सरकार 80 घंटे भी नहीं चल पाई थी। कहा जाता है कि फडणवीस से आज भी अजित पवार के काफी अच्छे रिश्ते हैं।
बता दें कि शनिवार को ही शरद पवार को एक बार फिर से अगले 4 सालों के लिए पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। वह 1999 से ही पार्टी के अध्यक्ष बने हुए हैं। फिलहाल उनके अलावा पार्टी के पास सुनील तटकरे और प्रफुल्ल पटेल जैसे दो महासचिव हैं। यही नहीं अजित पवार महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। 2024 के आम चुनाव के लिए शरद पवार विपक्षी एकता की वकालत कर रहे हैं। ऐसे दौर में अजित पवार यदि बागी तेवर दिखाते हैं तो शरद पवार को अपनी ही पार्टी में मुश्किल का दौर झेलना पड़ सकता है।
फिलहाल राकांपा में दो गुट सक्रिय माने जाते हैं। पहले खेमे में तो खुद शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले हैं, जिन्हें जयंत पाटिल, जितेंद्र आव्हाड, दिलीप वलसे पाटिल और छगन भुजबल जैसे कद्दावर नेताओं का समर्थन है। इसके अलावा अजित पवार का दूसरा गुट है, जिसमें धनंजय मुंडे और सुनील तटकरे जैसे नेता हैं। ये नेता युवा हैं और पब्लिक के बीच भी अच्छी पैठ रखते हैं। दरअसल राकांपा में शरद पवार के बाद अजित पवार जैसा कोई मास लीडर नहीं है। इसके पीछे उनकी कार्यशैली है। वह नेताओं और अपने क्षेत्र के लोगों के बीच रहने वाले नेताओं में से एक हैं। बयानबाजी से दूर वह अकसर अपने काम में लगे रहते हैं।